शनिवार, 13 जून 2020
jaindharam
ऋषभदेव निवस्त्र रहने लगे थे क्योंकि उनको अपनी स्थिति का ज्ञान नहीं था। वे परमात्मा के वैराग्य में इतने मस्त हो चुके थे कि उनको ध्यान ही नहीं था कि वे नंगे हैं। वर्तमान के जैनी महात्माओं ने वह नकल कर ली और नंगे रहने लगे। यह मात्र परंपरा का निर्वाह है। जैन धर्म में दो प्रकार के साधु रहते हैं। एक तो वह जो बिल्कुल नंगे रहते हैं और पूर्व के महापुरूषों की नकल कर रहे हैं। जैन धर्म की स्त्री, पुरूष, युवा लड़के-लड़कियां, बच्चे-वृद्ध सब उन नग्न साधुओं की पूजा करते हैं। इनको दिगम्बर साधु कहा जाता है। इनमें स्त्रियों को साधु नहीं बनाया जाता। विचारणीय विषय यह है कि क्या स्त्रियों को मोक्ष नहीं चाहिए ? यदि आपका मार्ग सत्य है तो स्त्रियों को भी पुरुष जैन दिगम्बरों की तरह नग्न रह कर मोक्ष प्राप्ति करने दी जाए । सच्चाई को न मानकर मात्र परंपरा का निर्वाह करने से परमात्मा प्राप्ति नहीं होती। दूसरे साधु श्वेताम्बर हैं। वे सफेद वस्त्र, मुख पर कपड़े की पट्टी रखते हैं। इसमें स्त्रियां भी साधु हैं। #Jincredibles #shyerajain
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